सुवर्ण विधान सौधा (एसवीएस) पर स्थित विरोध स्थल पर शौचालयों की सुविधा नहीं होने से आसपास के किसान अपने खेतों की पहरेदारी करने को मजबूर हैं। दरअसल जिला प्रशासन की इस कथित विफलता से आंदोलनकारी शौच आदि के लिए मजबूरन खेतों में जाते हैं।
शीतकालीन सत्र के शुरू होने के साथ पूरे राज्य के विभिन्न संगठनों के आंदोलन शुरू हो गए। जिला प्रशासन के लिए आंदोलन करने वालों को विभिन्न स्थानों की सुविधा मिली है, जिनमें यहां 20 एकड़ जमीन भी है जो सुवर्ण विधान सौधा के पास है। आंदोलन करने वालों की सुविधा के लिए उस स्थान पर विशाल मंच का निर्माण किया है और पेयजल सुविधा भी प्रदान की है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां प्रदर्शनकारियों के लिए शौचालय की सुविधा नहीं है।
राज्य भर से लोग आंदोलन में आ रहे हैं जो पेशाब आदि के लिए जगह तलाश में दिखते हैं लेकिन जगह नहीं मिलने पर यह खेतों में चले जाते हैं। शौच आदि के लिए खेतों की शरण लेने से आसपास के खेत मालिकों की समस्या शुरू हो गई है।
पुरुष आंदोलन करने वालों के लिए खेत शौचालय बन गए हैं, जबकि महिलाओं के लिए कोई विकल्प नहीं है। विरोध स्थल के नजदीक जमीन रखने वाले किसानों में से एक बसवंत तवनप्पा देसाई उन लोगों पर चिल्ला रहे थे जिन्होंने उनके क्षेत्र में ऐसा करने की कोशिश की थी। जब पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि आंदोलन करने वाले उनके खेतों में शौच आदि कर रहे हैं और अनजाने में फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके कारण उन्होंने लोगों को अंदर प्रवेश करने से रोकने के लिए खेत के चारों ओर कांटेदार झाड़ियों को रखा है। बीए स्नातक देसाई ने कहा कि उन्होंने अपने 11 एकड़ क्षेत्र में तूर दाल सहित विभिन्न फसलों की खेती की है।
उन्होंने कहा कि हर साल जिला प्रशासन विरोध स्थल पर शौचालय की सुविधा प्रदान करता है लेकिन इस साल शौचालयों की सुविधा नहीं दी है जिसके कारण लोग खेतों में प्रवेश कर रहे हैं। देसाई ने कहा कि आंदोलनकारी शौचालयों के रूप में खेतों का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि खेतों में खाने के बाद कचरा फेंक दिया जाता है जिसमें प्लास्टिक की बोतलें, पेपर प्लेट या प्लास्टिक होता है। जिलाधिकारी एस बी बोम्मनहल्ली ने कहा कि वह इस समस्या से अनजान हैं और आश्वासन दिया कि सरकार फसल के नुकसान के लिए किसानों को मुआवजा देगी।